मौर्यकालीन सामाजिक जीवन || Maurya samaj || मौर्यकालीनआर्थिक जीवन || Maurya arthvyavstha

Maurya Samaj Maurya arthvyavstha मौर्यकालीन सामाजिक जीवन मौर्यकालीन आर्थिक जीवन

मौर्यकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन (Mauryan social and economic life in hindi)

मौर्यकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन ( Mauryan social and economic life in Hindi )- मौर्यकालीन सामाजिक जीवन (Maurya Samaj) एवं मौर्यकालीन आर्थिक जीवन (Maurya arthvyavstha) के विषय में जानकारी का मुख्य स्रोत कौटिल्य का अर्थशास्त्र, अशोक के अभिलेख, मेगस्थनीज का इंडिका आदि हैं। 

मौर्यकालीन सामाजिक जीवन (Mauryan social life- Maurya Samaj)

अर्थशास्त्र में सामाजिक संगठन का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था को माना गया है। अर्थशास्त्र में शूद्र को शिल्प कला एवं सेवावृति के अतिरिक्त कृषि, पशुपालन एवं वाणिज्य से आजीविका चलाने की अनुमति दिया गया है।

अर्थशास्त्र में शूद्रों को आर्य कहा गया है तथा कृषि, पशुपालन एवं वाणिज्य (वार्ता) को शूद्रों का धर्म बताया गया है। वार्ता शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम गौतम ने किया है।

अर्थशास्त्र के अनुसार शूद्रों को सेना में भर्ती होने तथा सम्पत्ति रखने का अधिकार था। हालांकि अर्थशास्त्र में चारों वर्णों के सेना में भर्ती होने का उल्लेख है।

मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभक्त किया-

1. दार्शनिक2. किसान3.सैनिक
4.अहीर5. शिल्पी6. निरीक्षक
7. सभासद  

 

स्त्रियों  की स्थिति स्मृति काल की तुलना  में बेहतर थी उन्हें पुनर्विवाह एवं नियोग की अनुमति थी

अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने स्त्रियों को तलाक की अनुमति दी है तथा इसके लिए मोक्ष शब्द का प्रयोग किया है

वेश्यावृति की प्रथा प्रचलित थी जिसका निरीक्षण गणिकाध्यक्ष करता था एवं ऐसे स्त्रियों को रूपाजीवा कहा जाता था

सती प्रथा का कोई प्रमाण अर्थशास्त्र में नहीं मिलता है किन्तु यूनानी लेखकों ने उत्तर पश्चिम के सैनिकों की स्त्रियों के सती होने का उल्लेख किया है

मनोरंजन करने वालें पुरुष को रंगोपजीवी एवं स्त्रियों को रंगोपजीवीनी कहा जाता था

सम्भ्रांत घर की स्त्रियों जो प्राय: घर के अन्दर रहती थी उनको कौटिल्य ने अनिष्कासिनी कहा है

मेगस्थनीज के अनुसार भारत में दास प्रथा प्रचलित नहीं थी जबकि कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का उल्लेख किया है तथा यह माना है कि कृषि कार्य में उन्हें लगाया जाता था  

भारतीय इतिहास से सम्बन्धित अन्य अध्याय के लिए क्लिक करें

धर्म- मौर्यकाल में वैदिक धर्म प्रचलित था किन्तु कर्मकांड का प्रचलन उच्च वर्गों तक ही सीमित था। पतंजलि के अनुसार देवमूर्तियों को बेचा जाता था।

मौर्यकालीन आर्थिक जीवन (Mauryan economic life- Maurya Arthvyvstha)

अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था एवं राजस्व प्रणाली का वर्णन मिलता है जिसमें राज्य केन्द्रीय भूमिका निभाता था। 

सीताभूमि राजकीय भूमि को कहा जाता था जिसका अधिकारी सीताध्यक्ष होता था। कौटिल्य ने कई प्रकार की भूमि का उल्लेख किया है जैसे- कृष्ट (जुती हुई), आकृष्ट (बिना जुती हुई), स्थल(ऊँची), अदेवमातृक (बिना वर्षा के अच्छी खेती वाली भूमि) आदि।

राज्य की आय का प्रधान स्रोत भूमिकर था जो उपज का 1/6 होता था।   

सीता – राजकीय भूमि से होने वाली आय थी

बलि‘ एक प्रकार का भूराजस्व था।

‘हिरण्य’ नगद रूप में लिया जाने वाला कर था। 

मौर्य काल में सिंचाई के लिए अलग से उपज का 1/5 से 1/3 भाग कर के रूप में लिया जाता था। सिंचाई के लिए विशेष प्रयास किये जाते थे। 

जूनागढ़ अभिलेख में पुष्यगुप्त वैश्य द्वारा सुदर्शन झील के निर्माण का उल्लेख किया गया है

मौर्यकाल में भूमिकर उपज का 1/6 भाग या 1/4 भाग लिया जाता था।

उद्योग- मौर्य काल का प्रधान उद्योग सूत काटना एवं बुनना था। अर्थशास्त्र के अनुसार काशी, वंग, पुंडर, कलिंग, मालवा सूती वस्त्र के लिए प्रसिद्ध थे। 

व्यापार- मौर्य काल में स्थल एवं जल दोनों मार्ग से व्यापार होता था

भारतीय इतिहास से सम्बन्धित अन्य अध्याय के लिए क्लिक करें

मेगस्थनीज ने एग्रोनोमोई नामक मार्ग निर्माण अधिकारी का उल्लेख किया है जो 10 स्टेडिया (दूरी की इकाई ) की दूरी पर एक स्तम्भ स्थापित करता था

मौर्यों का बाह्य व्यापार रोम, सीरिया, फारस, मिस्र तथा अन्य पश्चिमी देशों के साथ भृगुकच्छ एवं ताम्रलिप्ति बन्दरगाह से होता था

आंतरिक व्यापार के प्रमुख केंद्र तक्षशिला, काशी, उज्जैन, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र एवं तोशाली थे  

कौटिल्य ने स्थल मार्ग की तुलना में नदी मार्गीय व्यापार को अधिक सुगम माना है। 

व्यापारियों का मुखिया श्रेष्ठिन कहलाता था

मौर्यकाल में बिक्रीकर की दर वस्तु के मूल्य की 1/10 थी।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 21 प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है।

कौटिल्य ने कई प्रकार के मुद्रा की चर्चा की है –

कार्षापण या पण या धरण चांदी के सिक्के को कहते थे।

सुवर्ण -सोने से बना सिक्का होता था।

माषक– तांबे का बना सिक्का माषक होता था तथा तांबे का छोटा सिक्का काकणि कहलाता था।

रूपदर्शक नामक अधिकारी मुद्राओं का परीक्षण करता था।

आहत मुद्राएँ मौर्य साम्राज्य की मान्य मुद्राएँ थी जिसपर मयूर, पर्वत और अर्धचन्द्र की छाप थी

भारतीय इतिहास से सम्बन्धित अन्य अध्याय के लिए क्लिक करें

 

मौर्यकालीन समाज का वर्णन कीजिए

कौटिल्य के अनुसार मौर्यकालिन समाज परम्परागत रूप से चातुर्वर्ण व्यवस्था पर आधारित थी जिसमें स्त्रियों को स्मृति काल की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त था एवं शूद्रों की स्थित अपेक्षाकृत रूप से अच्छी थी क्योंकि उन्हें कृषि, पशुपालन एवं व्यापार का अधिकार प्राप्त था.

मौर्य काल में महिलाओं की स्थिति कैसी थी ?

स्त्रियों को स्मृति काल की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त था- उन्हें नियोग, पुनर्विवाह एवं तलाक का अधिकार प्राप्त था सामान्य वर्ग में सती प्रथा का प्रचालन नहीं था.

मेगस्थनीज ने मौर्य समाज का वर्गीकरण कैसे किया है?

मेगस्थनीज ने मौर्य समाज का कार्यात्मक वर्गीकरण किया है. उसके अनुसार मौर्य समाज 7 वर्गों में विभाजित था-
1. दार्शनिक
2. किसान
3.सैनिक
4.अहीर
5. शिल्पी
6. निरीक्षक
7. सभासद

Get TSI GS Posts !

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Leave a Reply