प्राचीन बिहार का इतिहास : प्रमुख तथ्य / History of Ancient Bihar: Important Facts

प्राचीन बिहार (Ancient Bihar ) का इतिहास

प्राचीन बिहार का इतिहास (History of Ancient Bihar)

प्राचीन बिहार (पाषाण काल)

$        बिहार का प्राचीन इतिहास वास्तव में भारत का प्राचीनं इतिहास है.

$        बिहार के दक्षिणी भाग में पुरापाषाण काल के औजार मिले हैं। पत्थर की कुल्हाड़ियों के फल, चाकू और खुर्पी के रूप में प्रयोग किए जाने वाले पत्थर के टुकड़े हैं। ऐसे अवशेष मुंगेर, पटना, गया और नालंदा जिले में उत्खनन से  प्राप्त हुए हैं, जो अनुमानतः 100,000 ई.पू. काल के हैं।

$        मध्य पाषाण युग (100,000 से 40,000 ई.पू.) के अवशेष भी मुंगेर से मिले हैं। ये छोटे आकार के पत्थर के बने सामान हैं, जो तेज धार और नोक वाले हैं।

$        नवपाषाण युग के अवशेष उत्तर बिहार में चिरांद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली जिला) से प्राप्त हुए हैं। इनका काल सामान्यतः 2500 ई.पू. से 1500 ई.पू. के मध्य है, इनमें पत्थर के सूक्ष्म औजारों के साथ-साथ हड्डी के उपकरण भी मिले हैं।

$        भारत में चिरांद (सारण) से ही हड्डी के उपकरण प्रचुर मात्रा में मिले हैं।

$        ताम्र पाषाण युग एवं इसके परवर्ती चरण के अवशेष चिरांद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (सारण), मनेर (पटना) से  प्राप्त हुए हैं। चिरांद से ताम्र पाषाण युगीन काले-लाल मृदभांड प्राप्त हुए हैं।

वैदिक काल में प्राचीन बिहार 

$        उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.) में आर्यो का प्रसार पूर्वी भारत में आरंभ हुआ। इसमें लौह प्रौद्योगिकी की देन निर्णायक थी।

$        भारत में 1000 से 800 ई.पू. के मध्य लोहे का उपयोग आरंभ हुआ और इसी समय आर्यो का बिहार में भी विस्तार प्रारंभ हुआ।

$        लगभग 800 ई.पू. में रचित शतपथ ब्राह्मण विदेह माधव और उसके पुरोहित गौतम राहूगण के सरस्वती नदी के  तट से आगे बढ़ते हुए बिहार की सदानीरा नदी (गंडक नदी) के तट पर पहुंचने का विवरण देता है।

$        शतपथ ब्राह्मण की रचना – गंगाधारी क्षेत्र (बिहार भी इस क्षेत्र में शामिल) में।

$        ऋग्वेद में बिहार क्षेत्र के लिए कीकट एवं व्रात्य शब्दों का उल्लेख किया गया है।

प्राचीन बिहार महाजनपद काल

$        छठी शताब्दी ई.पू. के बौद्ध रचनाओं के अनुसार 16 महाजनपदों और लगभग 10 गणराज्यों की जानकारी मिलती है। इसमें तीन महाजनपद  अंग, मगध और लिच्छवी बिहार में स्थित थे।

$        इन तीनों के संबंध में विस्तृत जानकारी अंगुत्तर निकाय तथा भगवती सूत्र में मिलती है।

$        अंग महाजनपद बिहार के वर्तमान मुंगेर और भागलपुर जिलों के क्षेत्र में फैला था। इसकी राजधानी चम्पा (वर्तमान चम्पानगर) भागलपुर के समीप थी। बौद्ध साहित्य में चम्पा को तत्कालीन 6 प्रमुख नगरों में स्वीकारा गया है।

$        मगध महाजनपद के अधीन आधुनिक पटना, नालंदा, गया और शाहाबाद के कुछ क्षेत्र थे। इसकी राजधानी गूवराज अथवा राजगृह (वर्तमान राजगीर) थी।

$        वैदिक साहित्य में मगध के लोगों का उल्लेख ब्रात्य अर्थात् पतित के रूप में किया गया है। छठी शताब्दी ई.पू. से पहले मगध में बहिद्रथ राजवंश के शासन का उल्लेख प्राप्त होता है।

$        गंगा के उत्तर में वर्तमान तिरहुत प्रमंडल में वज्जियों का संघ था, जो आठ गणराज्यों से मिलकर बना था। इसमें सबसे प्रबल लिच्छवी गणराज्य था। इसकी सीमाएं वर्तमान वैशाली और मुजफ्फरपुर जिलों तक फैली हुई थी तथा राजधानी वैशाली थी।

$  वज्जि आठ राज्यों का संघ था जिसमें  तीन प्रमुख राज्य-वैशाली के लिच्छवी, मिथिला के विदेह तथा कुंडग्राम के ज्ञातृक थे।

$        आठ गणराज्यों में से एक शातृक (ज्ञातृक) गणराज्य था, जिसके प्रमुख सिद्धार्थ के यहां महावीर का जन्म 540 ई. पू. में कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था।

$        उनकी माता त्रिशला लिच्छवी गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन थीं। महावीर स्वामी ने 468 ई.पू. में पावापूरी में निर्वाण प्राप्त किया।

$        लिच्छवी (क्षत्रिय (ज्ञातृक कुल) ) सरदार चेटक की पुत्री का विवाह ज्ञातृक कुल के क्षत्रिय महावीर से हुआ था ।

$        चेटक की पुत्री चेल्लना का विवाह मगध नरेश बिंबिसार से हुआ।

$        कौटिल्य ने लिच्छवी राज्य का उल्लेख ‘राजशब्दोपजीवीसंघ’ के रूप में किया है। लिच्छवी राज्य की राजधानी वैशाली की पहचान बसाढ़ नामक गांव से की गई है।

$        वैशाली नगर का संस्थापक राजा विशाल था।

$        वैशाली की प्रसिद्ध नर्तकी-आम्रपाली थी।

$        आम्रपाली ने बौद्ध संघ को एक उधान समर्पित किया था।

$        विशाल राजवंश का अंतिम राजा- सुमति को माना जाता है।

$        पूर्वोत्तर बिहार के शाक्य गणराज्य में सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) का जन्म हुआ था। इस गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु थी, इसी के समीप लुम्बनी में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।

$        गौतम बुद्ध ने बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।

$        गौतम बुद्ध के समकालीन चार प्रमुख महाजनपद- कौशल, वत्स, अवंति, मगध थे।

$        यजुर्वेद में सबसे पहले विदेह राज्य का उल्लेख मिलता है। यहां के राजवंश की शुरूआत इक्ष्वाकु के पुत्र निमि विदेह से मानी जाती है।

$        राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिला की स्थापना की थी।  इस वंश के 25वें राजा  सिरध्वज जनक थे, जिनके द्वारा गोद ली गई पुत्री सीता का विवाह कौशल के राजा दशरथ के पुत्र राम से हुआ।

$        शतपथ ब्राह्मण में विदेह के जनक का उल्लेख सम्राट के रूप में किया गया है।

$        वाल्मीकी रामायण में मलद एवं करूना शब्द का प्रयोग सम्भवतः बक्सर क्षेत्र के लिए हुआ है। माना जाता है कि यहीं ताड़िका (राक्षसी) का वध भगवान राम के द्वारा हुआ था।

$        वायुपुराण के अनुसार गया में असुरों का राज था।

$        ऋग्वेद में कीकट क्षेत्र के अमित्र शासक प्रेमगंद की चर्चा हुई है, जबकि अथर्ववेद में अंग एवं मगध का उल्लेख मिलता है।

मगध महाजनपद

$        ब्रह्द्र्थ वंश की स्थापना एक मान्यतानुसार कुरु वंश के रजा वसु के पुत्र ब्रह्द्र्थ ने की थी.

$        ब्रह्द्र्थ वंश में कुल 10 राजा हुए जिसमे से सर्वाधिक प्रतापी राजा जरासंघ था। जरासंघ का विवाह मथुरा के शासक कंस की बहन से हुआ था। भीम ने  जरासंघ को मल्ल युद्ध में पराजित कर मार डाला।

$        वृहद्रथ वंश का अंतिम शासक- रिपुंजय था जिसकी हत्या एक मंत्री पुलीक ने कर अपने पुत्र को राजा बनाया किन्तु एक अन्य दरबारी महीय ने पुलीक एवं उसके पुत्र की हत्या कर अपने पुत्र बिम्बिसार को गद्दी पर बिठाया.

$        छठी शताब्दी ई.पू. मगध में हर्यक वंश का राज्य स्थापित हुआ। इस राज्य का संस्थापक बिम्बिसार, कौशल के प्रसेनजित, अवंति के चंडप्रद्योत तथा महात्मा बुद्ध का समकालीन था। उसने 544-492 ई.पू. तक शासन किया।

$        मगध की राजधानी-गिरिब्रज / राजगीर थी

$        बिम्बिसार का राजवैद्य जीवक था, जिसे अवंतिराज के अनुरोध पर उज्जैन भेजा गया था।

$        बिम्बिसार ने कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन कौशल देवी, लिच्छवी राजा चेटक की पुत्री चेलना तथा मद्र राज्य की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया था। वैशाली की ‘नगरवधू’ आम्रपाली से भी उसके संबंध थे।

$        भारतीय इतिहास में बिम्बिसार को स्थायी सेना रखने वाला पहला शासक माना जाता है तथा इस कारण उसे सेनिय भी कहा जाता है।

$        मगध की राजधानी राजगृह का निर्माण महागोविन्द नामक वास्तुकार ने किया जो बिम्बिसार के दरबार में रहता था।

$        बिम्बिसार की हत्या कर उसका महत्त्वाकांक्षी पुत्र अजातशत्रु सिंहासन पर बैठा। इस तथ्य से बौद्ध स्रोत सहमत हैं जबकि जैन स्रोत असहमत। अजातशत्रु ने 492-460 ई.पू. तक शासन किया।

$        अजातशत्रु ने कौशल नरेश प्रसेनजित को पराजित कर उनकी पुत्री वाजिरा के साथ विवाह किया था।

$        अजातशत्रु का संघर्ष वज्जि संघ के साथ हुआ, वैशाली पर अभियान में सुविधा हेतु अजातशत्रु ने गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर पाटलिग्राम में एक सैनिक छावनी का निर्माण करवाया जो आगे मगध की राजधानी बनी।

$        अजातशत्रु ने ने वस्सकार की सहायता से वज्जि संघ में फूट डालकर  लिच्छवियों को पराजित किया।

$        अजातशत्रु ने युद्धास्त्रों में शिलाकंटक तथा रथ-मूसल जैसे नवीन शस्त्रों की खोज की थी।

$        आजीवक संप्रदाय के संस्थापक मक्खलि गोशाल की मृत्यु मगध-लिच्छवी संघर्ष में हुई थी।

$        अजातशत्रु के शासनकाल के समय 483 ई. पू. में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगृह में हुआ था।

$        अजातशत्रु ने बुद्ध की मृत्यु महापरिनिर्वाण के पश्चात राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया।

$        अजातशत्रु के बाद 460 ई.पू. में उदायीभद्र या उदयिन मगध की राजगद्दी पर बैठा और 444 ई.पू. तक शासन किया।

$         महावंश के अनुसार अजातशत्रु  ने पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किला बनवाया, जिसका बाद में कुसुमपुर या पाटलिपुत्र के रूप में विकास हुआ।

शिशुनाग राजवंश

$        हर्यक वंश का अंतिम शासन नागदशक था, जिसका च्युत करके काशी के गवर्नर शिशुनाग ने 412 ई.पू. में शिशुनाग राजवंश की स्थापना की। शिशुनाग ने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया।

$        शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक था, जो काकवरनिन के नाम से प्रसिद्ध था। इसने मगध की राजधानी को स्थायी रूप से पाटलिपुत्र परिवर्तित कर दिया।

$        कालाशोक के शासन के दसवें वर्ष (383 ई. पू.) में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ।

$        शिशुनाग वंश का 344 ई.पू. में अंत हो गया।

$        शिशुनाग वंश के पश्चात् मगध पर नंद वंश का शासन स्थापित हुआ। इसका संस्थापक महापद्मनंद था।

नंद वंश

$        कलिंग विजय महापद्मनंद का प्रमुख अभियान था। विजय स्मारक के रूप में वह कलिंग से जिन की मूर्ति उठा लाया था। हाथी गुम्फा अभिलेख में उसके द्वारा कलिंग में एक नहर निर्मित कराए जाने का उल्लेख मिलता है।

$        पुराणों में महापद्मनंद को ब्राह्मणों का विरोधी एवं क्षत्रियों का विनाशक होने के कारण ‘अखिल क्षत्रान्तकारी’ तथा ‘सर्वक्षत्रान्तक’ कहा जाता है। उसे भारतीय इतिहास का प्रथम शूद्र शासक माना जाता है।

$        महापद्मनंद ने स्वयं ‘एकराट’ की उपाधि  धारण की थी।

$        व्याकरण के विद्वान आचार्य पाणिनि महापदमनंद के मित्र थे।

$        पाणिनि ने पाटलिपुत्र में शिक्षा प्राप्त की।

$        नंद वंश में कुल नौ शासक हुए, जिसमें अंतिम शासक घनानंद था।

$        भारत पर सिकंदर का आक्रमण घनानंद के समय ही हुआ था।

$        घनानंद को युनानी लेखको ने अग्रमीज/उग्रसेन कहा है।

$        शकटार तथा स्थूलमद घनानंद के मंत्री (अमात्य) थे एवं जैन मत के अनुयायी थे

मौर्य वंश

चन्द्रगुप्त मौर्य (320-298 ई.पू.)

$        घनानंद के अत्याचारी शासन का अंत करके चन्द्रगुप्त मौर्य (320-298 ई.पू.) ने चाणक्य की सहायता से मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

$        पश्चिमोत्तर सीमा प्रदेश को सबसे पहले यूनानियों के गिरफ्त से मुक्त कराने के कारण चंद्रगुप्त मौर्य को भारतीय इतिहास में ‘मुक्तिदाता’ के रूप में जाना जाता है।

$        चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी सेनानायक सेल्यूकस निकेटर को युद्ध में पराजित किया तथा उससे काबुल, कंधार, हिरात, बलूचिस्तान और मकरान को प्राप्त किया। साथ ही सेल्यूकस की पुत्री से विवाह भी किया।

$        सेल्यूकस का दूत मेगास्थनीज 315 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र आया था।

$        मेगास्थनीज की इंडिका में राजधानी पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन की विस्तृत चर्चा मिलती है। इसमें पाटलिपुत्र को पालिब्रोथा कहा गया है। पाटलिपुत्र के प्रशासन का दायित्व तीस नागरिकों की सभा पर था जो पांच-पांच सदस्यों की 6 समितियों में संगठित थे।

$        मगध की दोनों राजधानियां, राजगीर और पाटलिपुत्र अत्यंत सुरक्षित और सुदृढ़ थीं।

$        राजगीर जहां पांच पहाड़ियों से घिरा दुर्भेद्य दुर्ग था, वहीं पाटलिपुत्र की स्थिति जलदुर्ग की थी। पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर स्थित था, जबकि थोड़ी दूर पर सरयू भी गंगा में मिलती थी।

$        चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रसाद के अवशेष पटना के समीप कुम्भ्रहार गांव से मिले हैं, इसे खोजने का श्रेय स्पूनर को है।

$        भारत में प्रथम केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को ही दिया जाता है। चंद्रगुप्त के प्रशासन का पूर्ण विवरण कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है, जिसमें 28 अध्यक्षों एवं 18 तीर्थों की चर्चा है।

बिन्दुसार (298-272 ई.पू.)

$        चंद्रगुप्त मौर्य के उत्तराधिकारी बिन्दुसार (298-272 ई.पू.) के दरबार में यूनानी राजदूत डीमोंक्लस आया था।

$        बिन्दुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था।

अशोक (272-232 ई.पू.)

$         सिंहासन पर बैठने के 4 वर्ष बाद 269 ईसा पूर्व में राज्याभिषेक । राज्याभिषेक से पूर्व वह उज्जैन का राज्यपाल था।

$          261 ईसा पूर्व में (राज्याभिषेक के आठवें वर्ष) कलिंग विजय।

$          अशोक के बड़े भाई सुमन के पुत्र निग्रोध के प्रवचन से अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया, मोग्गलिपुत्ततिस का शिष्य बना। इससे पूर्व अशोक शैव था।

$          राज्याभिषेक के 10वें वर्ष उसने ‘बोधगया’ की यात्रा की। 14वें वर्ष धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की। 20वें वर्ष लुम्बिनी गया और उसे उल्विक (करमुक्त) घोषित करता है तथा ‘भाग कर’ (1/8) कर देता है।

$ अशोक के अभिलेख

$           अशोक के अभिलेखों में शाहनाज गढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं।

$            तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख अरामेइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं।

$            इसके अतिरिक्त अशोक के समस्त शिलालेख, लघु शीलास्तंभ लेख एवं लघु लेख ब्रह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं।

$            अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है। अभी तक अशोक के 40 अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।

$ अशोक के शिलालेख

# धौली– यह उड़ीसा के पुरी जिला में है।

# शाहबाज गढ़ी– यह पाकिस्तान (पेशावर) में है।

# मानसेहरा– यह पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है।

# कालपी– यह वर्तमान उत्तरांचल (देहरादून) में है।

# जौगढ़ – यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।

# सोपरा – यह महाराष्ट्र के थाणे जिले में है।

# एरागुडि– यह आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।

# गिरनार – यह काठियावाड़ में जूनागढ़ के पास है।

$ अशोक के लघु शिलालेख

# रूपनाथ – यह मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में है।

# गुर्जरा – यह मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है।

# भबू – यह राजस्थान के जयपुर जिले में है।

# मास्की – यह रायचूर जिले में है ।

# सहसराम   – यह बिहार के शाहाबाद जिले में है।

$ धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा 13वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहां दूत भेजे गये थे।

$ दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्य, सतिययुक्त केरल पुत्र एवं ताम्रपर्णि बताए गए हैं।

$ अशोक के लघु स्तम्भ लेख

# सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएं जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है महत्वपूर्ण अभिलेख निम्न स्थानों पर स्थित हैं –

# सांची – मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है।

# सारनाथ – उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है।

# रूमिन्देई – नेपाल के तराई में है।

# कौशाम्बी – इलाहाबाद के निकट है।

# निगली सागर – नेपाल के तराई में है।

# ब्रह्मगिरि – यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है।

# सिद्धपुर– यह ब्रह्मगिरि से एक मील उत्तर-पूर्व में स्थित है।

# जतिंगरामेश्वर – जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उत्तर-पूर्व में स्थित है।

# एरागुडि – यह आंध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।

# अहरौरा – यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।

# सारो-मारो – यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है।

# नेतुर – यह मैसूर जिले में स्थित है।

# वैशाली – सिंह शीर्ष (केवल शेर, लेख रहित)   – वैशाली बिहार में।

$ अशोक के गुहा लेख

# दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं।

# इन सभी की भाषा प्राकृत तथा ब्राह्मी लिपि में है। केवल दो अभिलेखों शाहवाजगढ़ी तथा मान सेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। यह लिपि दायीं ओर बायीं ओर लिखी जाती है।

# तक्षशिला से अरामेइक लिपि में लिखा एक भग्न अभिलेख कंधार के पास शारे-कुना नामक स्थान से यूनानी तथा अरामेइकद्विभाषीय अभिलेख प्राप्त हुआ है।

$ अशोक के स्तम्भ लेख

# अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छ: भिन्न स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाए गए हैं। इन स्थानों के नाम हैं-

# कौशाम्बी – इलाहाबाद में अकबर द्वारा लाया गया था।

# दिल्ली टोपरा – यह स्तम्भ लेख प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में पाया गया था। यह मध्य युगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं।

# दिल्ली मेरठ – यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया।

# लौरिया अरेराज तथा लौरिया नन्दनगढ़ – यह स्तम्भ लेख बिहार राज्य के चंपारण जिले में है।

$        बिहार में अशोक के अभिलेख बराबर, सहसराम तथा चम्पारण से प्राप्त हुए हैं। वैशाली और पाटलिपुत्र में अशोक के स्तंभ प्राप्त हुए हैं, परन्तु उन पर अभिलेख उत्कीर्ण नहीं हैं।

$        अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन 247 ई.पू. में हुआ था।

$        अशोक के शासन के अधिकांश समय असंधिमित्ता पटरानी थी तथा इसकी म्रत्यु के बाद तिस्सरक्खा को यह दर्जा प्राप्त हुआ, सम्भवतः इलाहबाद स्तम्भ लेख में उल्लिखित तीवर की माता कुरुवाकी ने ही तिस्सरक्खा की उपाधि धारण की थी.

$        संघमित्रा और चारुमती अशोक की दो पुत्रियाँ थी, चारुमती का विवाह नेपाल के एक क्षत्रिय देवपाल के साथ हुआ था जबकि संघमित्रा को अपने पुत्र महेंद्र के साथ श्रीलंका धर्म प्रचार हेतु भेजा था।

$        मौर्य शासनकाल में पाटलिपुत्र बौद्धिक क्रियाकलापों का बड़ा केंद्र था। इस समय पाटलिपुत्र के प्रमुख विद्वान थे-

उपवर्षा (मीमांसा एवं वेदांत के टीकाकार),

वैश (पाणिनी के गुरू),

पाणिनी (प्रसिद्ध व्याकरण तथा अष्टाध्यायी के रचयिता),

पिंगला (छंदोविच्चति के लेखक),

व्यादि (ज्यामितीय सूत्र संग्रह के लेखक),

चाणक्य (कूटनीतिज्ञ) आदि।

शुंग वंश

$        मौर्य साम्राज्य का अंत 185 ई.पू. में हो गया। अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा की गई।

$        पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की, जिसके शासनकाल में यवनों (युनानियों) ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया (गार्गी संहिता के अनुसार)। संभवतः यह आक्रमण डेमेट्रीयस ने किया था।

$        सम्भवतः पहली इ० पु० कलिंग (उड़ीसा) के शासक खारवेल ने मगध पर विजय प्राप्त की थी।

$        पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र द्वारा विदिशा विजय की गई थी।

$        शुंग ब्राह्मण थे और ऐसा माना जाता था कि उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति असहिष्णुता की नीति अपनाई।

$        पातंजलि शुंगों के राजदरबार में रहते थे तथा संभवतः मनुस्मृति का संकलन शुंग काल में ही हुआ था।

कण्व वंश

$        75 ई.पू. में शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति का हत्या करके उसके सचिव वसुदेव ने मगध पर कण्व वंश की स्थापना की थी।

$        कण्व वंश के अंतिम शासक को आंध्र- सातवाहनों ने अपदस्थ कर दिया, लेकिन इनके मगध पर शासन का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता।

$        प्रथम शताब्दी ई. में कुषाण नरेश कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया तथा यहां के प्रसद्धि बौद्ध विद्वान अश्वघोष एवं बुद्ध के भिक्षापात्र/जलपात्र को अपने साथ ले गया।

$        अश्वघोष को अपने दरबार में प्रश्रय दिया.

$        महावस्तु नामक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार ई.पू. दूसरी शताब्दी में  राजगृह में 36 प्रकार के शिल्पी रहते थे।

गुप्त वंश

$         गुप्त राजवंश की स्थापना महाराजा गुप्त ने लगभग 275 ई.में की थी। उनका वास्तविक नाम श्रीगुप्त था। इलाहाबाद स्तम्भ लेख के अनुसार इस वंश का पहला शासक श्रीगुप्त था।चीनी यात्री इत्सिंग भी श्रीगुप्त का उल्लेख करता है। उपाधि – महाराजा ।

$          गुप्त वंश सम्भवतः पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाहबाद एवं वाराणसी के बीच शासन करते थे।

$          घटोत्कच श्रीगुप्त का पुत्र था। 280 ई. पू. से 320 ई. तक गुप्त साम्राज्य का शासक बना रहा। इसने भी महाराजा की उपाधि धारण की थी।

$           चन्द्रगुप्त प्रथम- यह घटोत्कच का उत्तराधिकारी था, जो 320 ई. में शासक बना। चन्द्र्गुप्त के सिंहासनारोहण के अवसर पर (320 ई०) को गुप्त सम्वत भी कहा गया है।

$          बिहार के गौरव का पुरुरूद्धार गुप्त वंश द्वारा चैथी शताब्दी में हुआ। चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ई. में पाटलिपुत्र में महाराजधिराज की उपाधि धारण की।

$         चंद्रगुप्त प्रथम को प्रथम स्वतंत्र गुप्त शासक माना जाता है, उसने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह करके अपनी प्रतिष्ठा एवं शक्ति में वृद्धि की।

$         उसने विवाह की स्मृति में राजा-रानी प्रकार के सिक्‍कों का चलन करवाया, जिसमे एक तरफ चन्द्रगुप्त एवं कुमारदेवी का तथा दूसरी तरफ लक्ष्मी का चित्र है।

$         चन्द्रगुप्त प्रथम पहला भारतीय मूल का शासक था जिसने सोने के सिक्के जारी किये।

$         समुद्रगुप्त- चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद ३५० ई. में उसका पुत्र समुद्रगुप्त राजसिंहासन पर बैठा।

$         समुद्रगुप्त की माता का नाम कुमार देवी था। सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास में महानतम शासकों के रूप में वह नामित किया जाता है। इन्हें परक्रमांक कहा गया है।

$        हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था जिसने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की जिससे समुद्रगुप्त के राज्यारोहण, विजयों एवं साम्राज्य विस्तार की जानकारी मिलती है।

$        समुद्रगुप्त को विन्सेट स्मिथ ने भारत का नेपोलियन कहा है।

$        समुद्रगुप्त एक विजेता होने के साथ साथ एक सफल प्रशासक, संगीतज्ञ, कवि और विद्या का संरक्षक माना जाता है।

$        एक सिक्के पर उसे वीणा बजाते हए दिखाया गया है।

$        उसके द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करवाने का भी प्रमाण मिलता है।

$        श्रीलंका के राजा मेघवर्मन ने गया में बुद्ध का एक मंदिर बनवाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए समुद्रगुप्त (335-380 ई.) के पास अपना दूत भेजा था। समुद्रगुप्त द्वारा अनुमति दी गई।

$        समुद्रगुप्त के पश्चात रामगुप्त शासक बना जो पूर्णत: कायर एवं अयोग्य शासक था।

$        चन्द्रगुप्त II विक्रमादित्य– चन्द्रगुप्त द्वितीय 375 ई. में सिंहासन पर आसीन हुआ। वह समुद्रगुप्त की प्रधान महिषी दत्तदेवी से हुआ था। वह विक्रमादित्य के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ। उसने 375 से 415 ई. तक (40 वर्ष) शासन किया।

$       चन्द्रगुप्त द्वितीय का अन्य नाम देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री आदि हैं। उसने विक्र्मंक, विक्रमादित्य, परम भागवत आदि उपाधियाँ धारण की। उसने नागवंश, वाकाटक और कदम्ब राजवंश के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।

$       चन्द्रगुप्त द्वितीय ने नाग राजकुमारी कुबेर नागा के साथ विवाह किया जिससे एक कन्या प्रभावती गुप्त पैदा हुई। वाकाटकों का सहयोग पाने के लिए चन्द्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया।

$       चन्द्रगुप्त के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम का विवाह कदम्ब वंश में हुआ।

$       महरौली स्तम्भ लेख से उसके विजय अभियानों की चर्चा मिलती है।

$         चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (380-412 ई.) के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था। वह 411 ई. में पाटलिपुत्र भी गया तथा वहां के गौरव का वर्णन किया। यहां फाह्यान ने तीन वर्ष तक संस्कृत का अध्ययन किया।

$       चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल कला-साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। उसके दरबार में विद्वानों एवं कलाकारों को आश्रय प्राप्त था।

$       कुमारगुप्त प्रथम– चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्‍चात्‌ 415 ई. में उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम सिंहासन पर बैठा। इसकी  माता – ध्रुवदेवी थी। 

$        मंदसौर अभिलेख (वत्सभट्टि रचित प्रशस्ति) से कुमारगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।

$        स्कंदगुप्त के भितरी अभिलेख से पता चलता है कि कुमारगुप्त के शासनकाल में पुष्यमित्रों का आक्रमण हुआ था। जिसे रोकने के लिए कुमारगुप्त ने स्कंदगुप्त को भेजा था।

$       कुमारगुप्त प्रथम के अभिलेखों या मुद्राओं से ज्ञात होता है कि उसने अनेक उपाधियाँ धारण कीं। उसने महेन्द्र कुमार, श्री महेन्द्र, महेन्द्रादित्य आदि उपाधि धारण की थी।

$       गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के ही प्राप्त हुए हैं। उसने अधिकाधिक संख्या में मयूर आकृति की रजत मुद्राएं प्रचलित की थीं। उसी के शासनकाल में नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

$      पुष्यमित्र के आक्रमण के समय ही गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की 455 ई. में मृत्यु हो गयी थी।

$       उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र स्कन्दगुप्त सिंहासन पर बैठा।

$       स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य, क्रमादित्य आदि उपाधियाँ धारण कीं

$       जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि स्कन्दगुप्त के शासन काल में भारी वर्षा के कारण सुदर्शन झील का बाँध टूट गया था उसने दो माह के भीतर अतुल धन का व्यय करके पत्थरों की जड़ाई द्वारा उस झील के बाँध का पुनर्निर्माण करवा दिया।

$       हूणों का प्रथम आक्रमण स्कन्दगुप्त के काल में हुआ था।

$      पुरुगुप्त- पुरुगुप्त बुढ़ापा अवस्था में राजसिंहासन पर बैठा था।

$     कुमारगुप्त द्वितीय– पुरुगुप्त का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त द्वितीय हुआ।

$     बुधगुप्त– कुमारगुप्त द्वितीय के बाद बुधगुप्त शासक बना जो नालन्दा से प्राप्त मुहर के अनुसार पुरुगुप्त का पुत्र था। उसकी माँ चन्द्रदेवी था।ह्वेनसांग के अनुसार वह बौद्ध मत अनुयायी था। उसने नालन्दा बौद्ध महाविहार को काफी धन दिया था।

$     नरसिंहगुप्त बालादित्य– बुधगुप्त की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई नरसिंहगुप्त शासक बना।

$     इस समय गुप्त साम्राज्य तीन भागों क्रमशः मगध, मालवा तथा बंगाल में बँट गया। मगध में नरसिंहगुप्त, मालवा में भानुगुप्त, बिहार में तथा बंगाल क्षेत्र में वैन्यगुप्त ने अपना स्वतन्त्र शसन स्थापित किया। नरसिंहगुप्त तीनों में सबसे अधिक शक्‍तिशाली राजा था।

$      हूण शासक मिहिरकुल ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर नरसिंहगुप्त बालादित्य को पराजित किया तथा उसे बंगाल तक खदेड़ दिया।

$     नालन्दा मुद्रा लेख में नरसिंहगुप्त को परम भागवत कहा गया है।

$     कुमारगुप्त तृतीय– नरसिंहगुप्त के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त तृतीय मगध के सिंहासन पर बैठा।

सांस्कृतिक विकास – भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ ?

$     नालंदा महाविहार की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम ने की। कालांतर में यह विद्या का प्रमुख केंद्र बना।

$     सुल्तानगंज (भागलपुर जिला) का अजगैवीनाथ मंदिर तथा कहलगांव के समीप स्थित गुफाएं गुप्तकाल में निर्मित हुई थीं।

$      बोध गया के महाबोधि मंदिर तथा राजगृह के मनियार मठ का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।

$      गुप्तकाल के प्रसिद्ध खगोलविद् एवं गणितज्ञ आर्यभट्ट बराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त पाटलिपुत्र के निवासी थे।

$      गुप्त काल में बनी दो मीटर से भी ऊंची बुद्ध की एक कांस्य प्रतिमा भागलपुर के निकट सुल्तानगंज में पाई गई है।

$     चन्द्रगुप्त –II के नौ रत्न में कालिदास, वराहमिहिर, आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, धन्वन्तरी, अमर सिंह आदि।

परवर्ती गुप्त / उत्तर गुप्त / मगध गुप्त वंश

$     इस वंश का संस्थापक कृष्णगुप्त को माना जाता है. वे लोग सम्भवतः गुप्तों के अधीन मांडलिक थे.

$     कुमारगुप्त तृतीय इस वंश का पहला स्वतंत्र शासक था.

$     परवर्ती गुप्त शासकों के साथ ही बिहार के कुछ हिस्सों पर मौखरियों का भी शासन रहा।

$     इसी समय गौड़ (बंगाल) के शासक शशांक ने बिहार के विस्तृत क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। शशांक को नाम के सिक्के तथा मुहरें नालंदा, रोहतास एवं गया से प्राप्त हुई हैं। शशांक ने बोध गया स्थित महाबोधि वृक्ष को क्षति पहुंचाई।

$     सातवीं शताब्दी के आरम्भ में हर्षवर्धन ने बिहार के कुछ भागों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया तथा शशांक द्वारा किसी आक्रमण कार्रवाई का निदान आसानी से करने के लिए परवर्ती गुप्त शासकों में माधवगुप्त को मगध क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया।

$    कुमार गुप्त और माधव गुप्त हर्षवर्धन के ममेरे भाई थे जो मगध पर मौखरियों के नियंत्रण के बाद उसके पास चले गए थे

$     हर्षवर्धन के समय भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 6 वर्ष तक नालंदा विश्वविद्यालय (महाविहार) में अध्ययन किया था। इस विश्वविद्यालय की अपनी मुद्रा थी जिस पर ‘श्री नालंदा महाविहार आर्य भिक्षुसंघस्थ’ उत्कीर्ण था।

$     चीनी यात्री इत्सिंग भी 670 ई. में नालंदा आया था।

$     हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद किसी स्थानीय शासक अर्जुन ने चीनी यात्रियों को क्षति पहुंचाई। प्रतिशोध में तिब्बत और नेपाल के राजाओं ने संयुक्त रूप से बिहार पर आक्रमण कर दिया।

$     माधवगुप्त के पुत्र आदित्यसेन ने तिब्बत के प्रभुसत्ता से बिहार को मुक्त कराया।

$     परवर्ती गुप्त वंश का अंतिम शासक जीवितगुप्त II था, जिसका 750 ई. के लगभग कन्नौज के शासक यशोवर्मन ने वध कर दिया। इस समय तक पाटलिपुत्र का गौरव भी नष्ट हो चुका था।

पाल कालीन बिहार

$    हर्षवर्धन के साम्राज्य के विघटन के बाद आठवीं शताब्दी के मध्य में पूर्वी भारत में पालवंश के अभ्युदय हुआ, इसका संस्थापक गोपाल था जिसने शीघ्र ही अपना अधिकार बिहार के क्षेत्र में विस्तृत कर दिया।

$    गोपाल के पुत्र धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण किया तथा चक्र्युद्ध को शासक नियुक्त कर एक दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथस्वामी की उपाधि धारण की।

$    धर्मपाल ने विक्रमशीला महाविहार की स्थापना कराई। ओदंतपुरी और जगदल के विश्वविद्यालय (बौद्ध शिक्षा केंद्र) भी इसी काल में अस्तित्व में आए।

$    देवपाल ने जावा के शासक बलपुत्रदेव के अनुरोध पर नालंदा में एक विहार की देखरेख के लिए पांच गांव अनुदान में दिए थे। बलपुत्रदेव ने देवपाल की अनुमति से नालंदा में विदेशी विद्यार्थियों के लिए छात्रावास निर्मित कराया था।

$    मिहिरभोज एवं महेन्द्रपाल के शासन के समय बिहार के अधिकांश क्षेत्रों पर प्रतिहारों ने अधिकार कर लिया।

$    महिपाल प्रथम, जिसे पाल वंश का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है, ने समस्त बंगाल और मगध के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। किन्तु इसके उतराधिकारी कमजोर निकले। इसके बाद सेन वंश ने उतर बिहार पर अधिकार कर लिया।

$    पालों की शक्ति मगध के कुछ क्षेत्रों तक सिमट कर रह गई।

$    रामपाल के शासनकाल में मिथिला (तिरहुत) में कर्नाट वंश का राज्य स्थापित हुआ। इसका संस्थापक नन्यदेव था जिसने ‘कर्नाटकुल भूषण’ की उपाधि धारण की थी।

$    उसने 1097-1147 ई. तक शासन किया तथा इस दौरान नेपाल का क्षेत्र भी विजित किया।

$    रामपाल की म्रत्यु के बाद गहड़वालों ने भी बिहार में शाहाबाद और गया तक विस्तार कर लिया।

$   गहड़वाल वंश के शासक गोविंदचंद्र के मुंगेर ताम्रपत्र में तुरूष्कदंड नामक कर की चर्चा मिलती है। यह कर यहां के किसानों से प्राप्त किया जाता था और इससे तुर्को के आक्रमण रोकने के साधन जुटाए जाते थे।

मिथिला के कर्नाट शासक

$    रामपाल के शासनकाल में मिथिला (तिरहुत) में कर्नाट वंश की स्थापना नन्यदेव ने की थी।

$    नन्यदेव का पुत्र गंगदेव एक योग्य प्रशासक था जिसकी राजधानी सिमरावगढ़ थी।

$     जब बख्तियार खिलजी ने बिहार में अभियान किया था तो कर्नाट शासक नरसिंह देव ने उसे नजराना देकर संतुष्ट किया था।

$   तिब्बती यात्री धर्मास्वामिन ने तिरहुत क्षेत्र में तुर्क सेनापति तुगरिल तुगन के असफल सैनिक अभियानों की चर्चा की है।

$   हरिसिंहदेव के समय गयासुद्दीन तुगलक का बंगाल अभियान हुआ था, वह नेपाल के तराई में पलायन कर गया।

$   हरिसिंह देव एक महान समाज सुधारक था. उसी के समय पंजी प्रबंध का विकास हुआ तथा पंजिकारों का एक नया वर्ग संगठित हुआ। वर्तमान मैथिली समाज के स्वरूप का विकास इसी के समय हुआ था।

$   कर्नाट वंश के बाद वैनवार/ओईनवार वंश का शासन स्थापित हुआ। वैनवार वंश के शासक शिवसिंह कवि विद्यापति के संरक्षक थे. विद्यापति की रचना कीर्तिलता है।

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