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राज्य की विधायिका: बिहार विधानसभा
बिहार विधानसभा का गठन बिहार विधान परिषद् के बाद हुआ। बिहार विधानसभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि लोकतांत्रिक पद्धति से जनता एवं राज्य के लिए नीति निर्धारित करते हैं।
शेरशाह सूरी तथा अकबर के शासनकाल में बिहार का एक स्वतंत्र प्रांत के रूप में अस्तित्व में था किन्तु अग्रेजों ने 1 अप्रैल, 1912 को बिहार में बंगाल तथा उड़ीसा को मिलाकर एक बड़ी प्रशासनिक इकाई बना दिया।
वर्तमान में बिहार क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का 13वां (तेलंगाना बनने के बाद इसके पहले 12वां) बड़ा राज्य है, जबकि जनसंख्या की दृष्टि से इसका तीसरा स्थान है।
बिहार के राज्य प्रशासन को राजनीतिक दृष्टि से निम्नलिखित पांच श्रेणियों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है-
- राज्य विधायिका
- राज्य कार्यपालिका
- राज्य न्यायपालिका
- स्थानीय शासन एवं प्रशासन तथा
- भारतीय संघ में राजनीतिक प्रशासनिक प्रतिनिधित्व।
बिहार विधानमंडल अथवा विधायिका द्विसदनीय हैं जिसमें बिहार विधानसभा तथा विधान परिषद् शामिल है। 1912 में नए राज्य के रूप में बिहार के अभ्युदय के साथ ही बिहार विधान परिषद् का गठन किया गया जबकि भारत सरकार अधिनियम, 1919 के द्वारा बिहार विधानसभा अस्तित्व में आया जिसमे ओड़िसा भी शामिल था।
राज्य की विधायिका विधि निर्माण की संस्था होती है। बिहार विधान परिषद् एक उच्च सदन है जो स्थाई है जबकि बिहार विधानसभा निम्न सदन हैं जिसके सदस्य 5 वर्ष के लिए व्यस्क मताधिकार के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं।
बिहार में विधानसभा द्विसदनीय है- विधानसभा तथा विधान परिषद। विधानसभा में 243 सदस्य तथा विधान परिषद में 75 सदस्य (निर्वाचित एवं मनोनित) हैं। विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष का है, जबकि विधान परिषद एक स्थायी सदन है।
बिहार विधान परिषद्
मॉर्ले-मिंटो द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार बनाए गए भारतीय परिषद् अधिनियम, 1909 के आलोक में 25 अगस्त, 1911 को भारत सरकार ने भारत सचिव को पत्र भेजकर बिहार को बंगाल से अलग करने की सिफारिश की जिसका सकारात्मक उत्तर 01 नवंबर, 1911 को आया।
इंग्लैंड के सम्राट द्वारा दिल्ली दरबार में 12 दिसम्बर, 1911 को बिहार-उड़ीसा प्रांत के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त करने की घोषणा हुई और 22 मार्च, 1912 को नए प्रांत का गठन हुआ।
1 अप्रैल, 1912 को चार्ल्स स्टुअर्ट बेली बिहार एवं उड़ीसा राज्य के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने।
लेफ्टिनेंट गवर्नर को सलाह देने के लिए इण्डियन कौंसिल ऐक्ट, 1861 एवं 1909 में संशोधन कर गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट,1912 द्वारा बिहार विधान परिषद् का गठन किया गया जिसमें 3 पदेन सदस्य, 21 निर्वाचित सदस्य एवं 19 मनोनीत सदस्य रखे गए।
विधान परिषद् की प्रथम बैठक 20 जनवरी, 1913 को पटना कॉलेज (बांकीपुर) के सभागार में हुई ।
भारत अधिनियम, 1919 के अंतर्गत 29 दिसम्बर, 1920 को बिहार और उड़ीसा को गवर्नर का प्रांत घोषित किया गया। विधान परिषद् की सदस्य संख्या- 43 से बढ़ाकर 103 कर दी गई जिसमें 76 निर्वाचित, 27 मनोनीत तथा 2 विषय- विशेषज्ञ सदस्य होते थे।
भारत सरकार अधिनियम, 1919 के आने के बाद बिहार और उड़ीसा को संपूर्ण राज्य का दर्ज़ा प्राप्त हुआ। बिहार के पहले गवर्नर सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा बने थे।
बिहार विधानसभा भवन में 7 फरवरी 1921 को पहली बैठक हुई, जिसे लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा ने गवर्नर के तौर पर संबोधित किया था। उस वक्त बिहार विधानसभा के वर्तमान भवन को बिहार उड़ीसा विधान परिषद के नाम से जाना जाता था। सर वाल्टर मोड ने इसकी अध्यक्षता की थी।
26 जनवरी, 1950 को लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद-171 में वर्णित उपबन्धों के अनुसार विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या 72 निर्धारित की गई।
पुन: विधान परिषद् अधिनियम, 1957 द्वारा 1958 ई. में परिषद् के सदस्यों की संख्या 72 से बढ़ाकर 96 कर दी गई।
बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा बिहार के 18 जिलों तथा 4 प्रमंडलों को मिलाकर 15 नवम्बर, 2000 ई. को बिहार से अलग कर झारखंड राज्य की स्थापना की गई और बिहार विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 96 से घटाकर 75 निर्धारित की गई।
अभी बिहार विधान परिषद् में 27 सदस्य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से, 6 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से, 24 स्थानीय प्राधिकार से तथा 12 मनोनीत सदस्य हैं ।
बिहार विधानसभा :इतिहास
1935 में पारित अधिनियम के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बनाया गया, तब बिहार में विधानमंडल के तहत दो सदनों, विधान परिषद और विधानसभा की व्यवस्था अस्तित्व में आई। 1936 में उड़ीसा भी बिहार से अलग हो गया।
1937 में बिहार विधानसभा का गठन हुआ था उस काउंसिल के पहले चेयरमैन सच्चिदानंद सिन्हा थे. पहले स्पीकर राम दयालु सिंह चुने गए थे.
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के व्यवस्थाओं के अनुसार जनवरी 1937 की अवधि में बिहार विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए. 20 जुलाई 1937 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार का गठन हुआ था.
1950 में संविधान लागू होने के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का पहली बार चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस सत्ता में आई. श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा राज्य के पहले उप मुख्यमंत्री के साथ सह वित्त मंत्री बने.
आज़ादी के बाद हुए पहले चुनाव के बाद 1952 में पहली बार विधानसभा की बैठक हुई, तब विधानसभा में 331 सदस्य थे।
1956 में राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन किया गया, लेकिन ‘बिहार’ का अपना स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रहा।
15 नवम्बर, 2000 को बिहार का विभाजन करके एक पृथक राज्य ‘झारखंड’ का गठन किया गया।
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में 38 सीटें अनुसूचित जाति और दो सीटें अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए आरक्षित हैं.
राज्य के पांच ऐसे जिले हैं जहां पर न तो एससी की और न ही एसटी वर्ग की कोई सीट आरक्षित हैं. इनमें किशनगंज, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा और अरवल जिले शामिल हैं.
बिहार विधानसभा भवन की डिजाइन वास्तुविद ए एम मिलवुड ने तैयार किया था।
बिहार विधान सभा के अध्यक्ष की सूची
नाम | अवधि |
श्री रामदयालु सिंह | 23.07.1937-11.11.1944 |
श्री बिन्धयेश्वरी प्रसाद वर्मा | 25.04.1946-14.03.1962 |
डॉ0 लक्ष्मी नारायण सुधांशु | 15.03.1962-15.03.1967 |
श्री धनिकलाल मंडल | 16.03.1967-10.03.1969 |
श्री राम नारायण मंडल | 11.03.1969-20.03.1972 |
श्री हरिनाथ मिश्र | 21.03.1972-26.06.1977 |
श्री त्रिपुरारी प्रसाद सिंह | 28.06.1977-22.06.1980 |
श्री राधानन्दन झा | 24.06.1980-01.04.1985 |
श्री शिवचन्द्र झा | 04.04.1985-23.01.1989 |
श्री मोहम्मद हिदायुतल्ला खाँ | 27.03.1989-19.03.1990 |
श्री गुलाम सरवर | 20.03.1990-09.04.1995 |
श्री देव नारायण यादव | 12.04.1995-06.03.2000 |
श्री सदानन्द सिंह | 09.03.2000-28.06.2005 |
श्री उदय नारायण चौधरी | 30.11.2005-29.11.2010, 02.12.2010-28.11.2015 |
श्री विजय कुमार चौधरी | 02.12.2015-15.11.2020 |
श्री विजय कुमार सिन्हा | 25.11.2020 से …. |
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